नई दिल्ली। देश के शीर्षस्थ न्यायालय ने हाल ही में बाल यौन शोषण सामग्री (बाल पोर्नोग्राफी) को देखने और संग्रहीत करने के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। इस फैसले में, कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को पलटा, जिसमें कहा गया था कि व्यक्तिगत उपयोग के लिए बाल पोर्नोग्राफी देखना या डाउनलोड करना अपराध नहीं है। यह निर्णय यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) के तहत कानूनों को और सख्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति का इरादा बाल पोर्नोग्राफी को साझा करने या व्यावसायिक लाभ के लिए उपयोग करने का है, तो यह पॉक्सो अधिनियम की धारा 15 के तहत अपराध माना जाएगा। इस धारा के तहत तीन अलग-अलग उपधाराएँ हैं।
उपधारा (1): यह किसी व्यक्ति के द्वारा बाल अश्लील सामग्री को हटाने, नष्ट करने या रिपोर्ट करने में विफलता को दंडित करती है।
उपधारा (2): इसमें बाल पोर्नोग्राफी के वास्तविक प्रसारण, प्रदर्शन या वितरण को दंडित किया गया है।
उपधारा (3): यह वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए बाल पोर्नोग्राफी का भंडारण या कब्जा करने को दंडित करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इंटरनेट पर बाल यौन शोषण सामग्री को देखने का कार्य, बिना भौतिक रूप से उसे डाउनलोड किए भी, कब्जा माना जाएगा, बशर्ते कि व्यक्ति ने उस सामग्री पर नियंत्रण स्थापित किया हो। अदालत ने बाल पोर्नोग्राफी शब्द की निंदा की और सुझाव दिया कि इसे बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री के रूप में संदर्भित किया जाए। यह परिवर्तन इस मुद्दे की गंभीरता को समझने में मदद करेगा। इस निर्णय के माध्यम से, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बच्चों के संरक्षण के लिए भारत की न्याय प्रणाली कितनी संवेदनशील है। यह निर्णय न केवल कानून को मजबूत बनाता है, बल्कि समाज में बाल यौन शोषण के खिलाफ एक मजबूत संदेश भी देता है। यह अदालती निर्णय उन सभी के लिए एक चेतावनी है जो इस प्रकार के अपराधों में लिप्त हैं कि ऐसे कृत्यों को सहन नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: बाल यौन शोषण सामग्री को देखना और संग्रहीत करना अपराध
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