Home देश पर्दे के पीछे वार्ता चाहती थी तिब्बत की निर्वासित सरकार, भारत का हवाला दे चीन ने झटका हाथ…

पर्दे के पीछे वार्ता चाहती थी तिब्बत की निर्वासित सरकार, भारत का हवाला दे चीन ने झटका हाथ…

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तिब्बत की निर्वासित सरकार और चीन के बीच पर्दे के पीछे बातचीत शुरू होने की खबरें आने के एक दिन बाद ही चीन ने केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA) को झटका दे दिया है।

चीन ने कहा है कि वह केवल दलाई लामा के प्रतिनिधियों से ही बातचीत करेगा, भारत में निर्वासित तिब्बती सरकार के अधिकारियों से नहीं। हालांकि, बीजिंग ने तिब्बत के सर्वोच्च बौद्ध आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की स्वायत्तता की लंबे समय से जारी मांग पर बातचीत से इनकार कर दिया।

बीजिंग के बातचीत से इनकार करने के बाद निर्वासित तिब्बती सरकार ने दोहराया है कि पारस्परिक बातचीत से ही “चीन-तिब्बत संघर्ष” का समाधान हो सकता है और तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता दिलाने की ओर आगे बढ़ाया जा सकता है।

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA) के सिक्योंग या राजनीतिक नेता पेनपा त्सेरिंग ने पिछले सप्ताह धर्मशाला में पत्रकारों के एक छोटे समूह को बताया कि निर्वासित तिब्बती सरकार ने तिब्बत के मुद्दे का समाधान खोजने के तरीकों की खोज के लिए चीन के साथ बैक चैनल संचार खोला था।

हालंकि, उन्होंने कहा कि इससे तत्काल किसी तरह की सफलता की कोई उम्मीद नहीं है।

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने शुक्रवार को कहा था कि बीजिंग केवल दलाई लामा के निजी प्रतिनिधि के साथ ही बातचीत करेगा, न कि निर्वासित तिब्बती सरकार के साथ।

इस बीच, चीनी विदेश मंत्रालय के रुख के जवाब में सीटीए के प्रवक्ता तेनजिन लेक्शाय ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की मध्यम मार्ग की नीति (MWP) चीनी संविधान और चीन के क्षेत्रीय राष्ट्रीय स्वायत्तता कानून के ढांचे के भीतर तिब्बती लोगों के लिए वास्तविक स्वायत्तता की तलाश करना है।” 

तिब्बती निर्वासित सरकार की तिब्बत के लिए स्वतंत्रता नहीं, बल्कि स्वायत्तता की मांग करने की आधिकारिक स्थिति का जिक्र करते हुए लेक्शाय ने कहा, “एमडब्ल्यूपी के माध्यम से चीन-तिब्बत संघर्ष को हल करना पारस्परिक रूप से लाभकारी हो सकता है।” 

भारतीय पक्ष ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है। निर्वासित तिब्बती सरकार हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थित है।

त्सेरिंग ने कहा कि सीटीए तिब्बत के मुद्दे पर विदेश मंत्रालय और भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर काम करता है। त्सेरिंग ने यह भी कहा कि उनके वार्ताकार “बीजिंग में लोगों” से बातचीत जारी रखे गुए हैं और चीनी पक्ष के “अन्य तत्वों” के साथ तिब्बती नेतृत्व तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं। 

बता दें कि तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा के प्रतिनिधियों और चीन की सरकार के बीच 2002 से 2010 तक नौ दौर की बातचीत हुई थी, जिसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका था। तब से लेकर अब तक कोई औपचारिक बातचीत नहीं हुई है।

तिब्बत सरकार के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने संकेत दिया कि पर्दे के पीछे चल रही बातचीत का उद्देश्य समग्र वार्ता प्रक्रिया को बहाल करना है क्योंकि तिब्बती मुद्दे को हल करने का यही एकमात्र तरीका है।

सीटीए नेता ने 2020 में पूर्वी लद्दाख विवाद के बाद नई दिल्ली और बीजिंग के बीच खराब हुए संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय सीमा में चीनी घुसपैठ ने भारत में तिब्बत के मुद्दे को प्रमुखता से रखा है।

उन्होंने कहा, ”सीमा पर चीनी घुसपैठ के साथ ही तिब्बत का मुद्दा भी स्वाभाविक रूप से भारत में उजागर हो गया है।” त्सेरिंग ने तिब्बत के मुद्दे को लेकर भारत से मिल रहे अधिक समर्थन पर भी जोर दिया।

उन्होंने कहा, ”आप देख सकते हैं कि भारत की विदेश नीति अब अधिक जीवंत हो रही है। दुनिया भर में भारत का प्रभाव भी बढ़ रहा है। इस लिहाज से हम निश्चित रूप से चाहेंगे कि भारत तिब्बत के मुद्दे के प्रति थोड़ा और मुखर हो।”

वर्ष 1959 में चीन के खिलाफ आंदोलन असफल होने के बाद 14वें दलाई लामा तिब्बत से भागकर भारत आ गए और उन्होंने यहां से निर्वासित सरकार की स्थापना की।

चीन की सरकार के अधिकारियों और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों के बीच 2010 के बाद से कोई औपचारिक वार्ता नहीं हुई है।

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