Home राजनीती मोहन भागवत के बाद आरएसएस मुखपत्र में लिखा-स्वार्थ के लिए मंदिर का प्रचार गलत

मोहन भागवत के बाद आरएसएस मुखपत्र में लिखा-स्वार्थ के लिए मंदिर का प्रचार गलत

by News Desk

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य ने मंदिर-मस्जिद विवाद पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान का समर्थन किया है। पांचजन्य ने संपादकीय में लिखा कि कुछ लोग अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए मंदिरों का प्रचार कर रहे हैं और खुद को हिंदू विचारक के रूप में पेश कर रहे हैं। पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने संपादकीय कि मंदिरों पर यह कैसा दंगल में लिखा- मंदिरों का राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं है। इसे राजनीति का हथियार नहीं बनाना चाहिए। भागवत का बयान गहरी दृष्टि और सामाजिक विवेक का आह्वान है।
मोहन भागवत ने 19 दिसंबर को पुणे में कहा था कि राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वे नई जगहों पर इस तरह के मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं। हर दिन एक नया मामला उठाया जा रहा है। इसकी इजाजत कैसे दी जा सकती है? भारत को दिखाने की जरूरत है कि हम एक साथ रह सकते हैं। हालांकि, आरएसए के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने मोहन भागवत से अलग राय रखी थी। पत्रिका ने इसे ऐतिहासिक सच जानने और सभ्यतागत न्याय की लड़ाई कहा था।
भ्रामक प्रचार को बढ़ावा देना चिंताजनक
भागवत के बयान के बाद मीडिया में लड़ाई जैसी स्थिति पैदा हो गई है। या तो यह जानबूझकर बनाई जा रही है। एक स्पष्ट बयान से कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। भागवत का बयान समाज से इस मुद्दे पर समझदारी से निपटने की एक स्पष्ट अपील थी। इन मुद्दों पर अनावश्यक बहस और भ्रामक प्रचार को बढ़ावा देना चिंताजनक है। सोशल मीडिया ने इसे और बढ़ाया है। कुछ असामाजिक तत्व खुद को सामाजिक समझदार मानते हैं। वे सोशल मीडिया पर समाज की भावनाओं का शोषण कर रहे हैं। ऐसे असंगत विचारकों से दर रहना जरूरी है। भारत एक सभ्यता और संस्कृति का नाम है, जो हजारों साल से विविधता में एकता का सिद्धांत न केवल सिखाता रहा है, बल्कि इसे जीवन में भी अपनाया है। आज के समय में मंदिरों से जुड़े मुद्दों को राजनीति के हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चिंताजनक है। सरसंघचालक ने इस प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। यह दृष्टिकोण दिखाता है कि हिंदू समाज को अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करते हुए राजनीतिक झगड़ों, व्यक्तिगत महिमामंडन और विवादों से बचना चाहिए। भागवत का संदेश एक गहरी सामाजिक चेतना को जागृत करता है। यह हमें याद दिलाता है कि इतिहास के घावों को कुरेदने के बजाय हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करते हुए समाज में सामंजस्य और सौहार्द की भावना को बढ़ावा देना चाहिए।

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